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संस्कृत भाषा भारतीय साहित्य का मूल और महत्वपूर्ण अंग है। इसका विस्तार संस्कृत श्लोकों में देखा जा सकता है, जो अपार साहित्यिक और धार्मिक महत्व रखते हैं। संस्कृत श्लोक अर्थ सहित विभिन्न ग्रंथों और काव्यों में प्रचलित हैं और भारतीय साहित्य के अद्वितीय धारणाओं को प्रतिष्ठित करते हैं।
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Sanskrit Shlok के प्रमुख ग्रंथ
संस्कृत श्लोकों के कई महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। इनमें से कुछ प्रमुख ग्रंथों के नाम निम्नलिखित हैं:
- भगवद्गीता
- महाभारत
- रामायण
- श्रीमद् भागवत पुराण
- वेद
- उपनिषद
ये ग्रंथ संस्कृत श्लोकों की महत्वपूर्ण स्रोत हैं और भारतीय साहित्य और धर्म के आधार को गढ़ने में मदद करते हैं।
संस्कृत श्लोक के भाग
संस्कृत श्लोक तत्त्व, पद्य, छंद, अनुभाग, मात्रा, वाक्य और पद के भागों में विभाजित होते हैं। इन भागों का उच्चारण और अभिप्रेतान में विशेष महत्व होता है। संस्कृत श्लोकों के अंतर्गत छंद और ताल का पालन किया जाता है, जो इन्हें एक अद्वितीय संगीतीय और मेलोडियस अनुभव प्रदान करता है।
संस्कृत श्लोक के उदाहरण – Sanskrit shlok with hindi meaning
यहां विभिन्न संस्कृत श्लोकों के 20 उदाहरण दिए गए हैं, जहां हर श्लोक के साथ एक संक्षिप्त व्याख्या दी गई है:
वसुधैव कुटुम्बकम्।
व्याख्या: यह श्लोक कहता है कि संसार सभी मनुष्यों को एक परिवार के रूप में स्वीकार करता है। इसका अर्थ है कि हम सभी एक-दूसरे के साथ एकता, सौहार्द और प्रेम के साथ रहने चाहिए।
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि हम सभी सुखी और स्वस्थ रहें, सभी शुभ कार्यों को देखें और किसी को दुःख न हो। यह हमें सभी के प्रति प्रेम, समरसता और सहयोग की ओर प्रेरित करता है।
सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः। आचार्याय प्रियं धनं आहार्यं प्रियं॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि हमें सत्य बोलना चाहिए, धर्म का पालन करना चाहिए, स्वाध्याय में ध्यान देना चाहिए, गुरु के प्रति प्रेम और सम्मान रखना चाहिए, और प्रिय धन को परिग्रह नहीं करना चाहिए। यह हमें नैतिकता, स्वाध्याय और आचार्य की महत्वपूर्णता की ओर प्रेरित करता है।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
व्याख्या: यह श्लोक कहता है कि जहां महिलाएं पूज्य होती हैं, वहां देवताओं की वास्तुओं में आनंद होता है। यह हमें महिलाओं के सम्मान के प्रति आदर्श रखने के लिए प्रेरित करता है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि तुम्हारा कर्तव्य कर्म करने में है, फलों की चिंता मत करो। तुम्हारा कर्मफल नहीं होता है, इसलिए तुम्हें कर्म में आसक्ति नहीं होनी चाहिए। यह हमें निष्काम कर्म करने के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करता है।
अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
व्याख्या: यह श्लोक कहता है कि यह मनुष्य वही बन्धु है और वही नहीं है, जिसकी गणना छोटी-मंद होती है। वास्तविकता में विशाल हृदय वाले लोगों के लिए संसार एक परिवार है। यह हमें सभी मनुष्यों के साथ एकता और भ्रातृभाव को समझने के लिए प्रेरित करता है।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। मनस्वी कार्य सिद्ध्यर्थम् अन्यः प्रतिकूलो नरः॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि मनुष्य को अपनी प्रतिकूलताओं को अन्य लोगों के साथ नहीं साझा करना चाहिए। बल्कि उन्हें अपने मन के साथ विनम्र कार्यों को सिद्ध करने के लिए प्रयास करना चाहिए। यह हमें आत्मसम्मान और स्वाभिमान की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि कार्यों को मन के विचारों से नहीं, बल्कि प्रयास और कठिनाइयों के माध्यम से ही सिद्ध किया जा सकता है। जैसे कि सोये हुए सिंह के मुँह में हिरण नहीं घुसते, उसी तरह आलसी व्यक्ति को उद्यम से कार्य करना चाहिए। यह हमें कठिनाइयों का सामना करके समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।
उच्चैःश्रवस्तम् अमृतस्य पुत्राः अयंति मर्त्याः। आयुः पुरुषस्य विध्यन्ति विद्यया अमृतमश्नुते॥
व्याख्या: यह श्लोक कहता है कि अमृत के संतान माने जाने वाले वाक्यों का पुरुष जीवन की यापना करता है। विद्या से पुरुष की आयु बढ़ती है और वह अमृत का आनंद चक्कर लेता है। यह हमें शिक्षा की महत्वपूर्णता और ज्ञान के आधार पर जीवन का निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है।
आपदां धारयेद्यस्तु सर्वव्यापी नरोत्तमः। अयुध्यमानो ब्रह्मलोके वासंति न नरेश्वराः॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि जो मनुष्य सभी प्रकार की संकटों का सामना करता है, वह श्रेष्ठ मनुष्य होता है। यदि कोई व्यक्ति अयुध्यमान होकर ब्रह्मलोक में निवास करता है, तो वह नरेश्वरों के समान होता है। यह हमें संघर्ष की ऊर्जा और सहनशीलता की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च। अहिंसा परमं दानं, धर्मो हिंसा तथैव च॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि अहिंसा ही सबसे उच्च धर्म है और धर्म में हिंसा नहीं होनी चाहिए। अहिंसा ही सबसे उच्च दान है और धर्म में हिंसा नहीं होनी चाहिए। यह हमें अहिंसा के महत्व और समग्रता की ओर प्रेरित करता है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥
व्याख्या: यह श्लोक कहता है कि हम सभी सुखी और स्वस्थ रहें, सभी शुभ कार्यों को देखें और किसी को दुःख न हो। यह हमें सभी के प्रति प्रेम, समरसता और सहयोग की ओर प्रेरित करता है।
वृक्षस्य रक्षा रक्षिता।
व्याख्या: यह श्लोक कहता है कि पेड़ों की रक्षा करने वाले ही रक्षित होते हैं। यह हमें प्रकृति के संरक्षण की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
स्वयमेव मृगेन्द्राणां वधे न मोक्षः प्रयोजनम्। तस्माद्ब्रह्मघ्ना जानीते ब्राह्मणान्येव तत्पराः॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि मृगराजों के मारने में मोक्ष का कोई उद्देश्य नहीं है। इसलिए ब्राह्मणों को ब्रह्महत्या करने वाले ही जानने चाहिए। यह हमें अहिंसा और सबके प्रति सम्मान की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
सहाय्यायते पुरुषः श्रेयसे सहचारिणः। अपि व्याधिपरीतस्य शीलस्यापि हितं भवेत्॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि एक व्यक्ति अपने श्रेयस्कर साथी की सहायता करता है। व्याधि या अनुकूल परिस्थिति के साथ भी उसके शील की हितैषी होती है। यह हमें सहायता, सामाजिक जिम्मेदारी, और सहकर्मीता की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि उठो, जागो, और लक्ष्य प्राप्त करो। क्योंकि अच्छी रूप से जागरूक होकर बाधाओं के ज्वालामुखी निशाने लगते हैं, जिनका दुर्गम सफर है। कवियों कहते हैं कि वह पथ बताते हैं। यह हमें समर्पण, जागरूकता, और संघर्ष की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो। यह हमें सत्य, ज्ञान, और मुक्ति की खोज में प्रेरित करता है।
यथा नारी समाश्वेष्टा देवता रूपेण चैव यथा। तथैवापतिरुच्यते सततं जननि प्रतिष्ठितः॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि जैसे पति हमेशा अपनी पत्नी के साथ रहता है, वैसे ही वह देवता स्वरूप में होता है। मातृभूमि हमेशा स्थायी रहती है। यह हमें सम्मान, संरक्षण, और सहयोग की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करता है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
व्याख्या: इस श्लोक में कहा गया है कि तेरा अधिकार कर्म करने में है, फलों में कभी नहीं। मत कर्मफल के लिए कारण बन, और कर्म में अटके नहीं रहने दे। यह हमें कर्मयोग की महत्वपूर्णता, समर्पण, और कर्मचारीत्र्य की ओर प्रेरित करता है।
अर्जुन उवाच: प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च। एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव॥
व्याख्या: अर्जुन कहते हैं: “हे केशव, मैं प्रकृति और पुरुष को, क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ को भी जानना चाहता हूँ। इसे जानने की इच्छा है, ज्ञान और ज्ञेय को।” यह हमें अंतर्ज्ञान, अध्यात्म, और सत्य के प्रति प्रबुद्धता की ओर प्रेरित करता है।
Sarve bhavantu sukhinah meaning in Hindi
श्लोक:
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।
अर्थ:
सभी सुखी हों, सभी निरोग हों। सभी मंगलमय दृश्य देखें, किसी को भी दुःख न हो।
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया है। इस श्लोक में भगवान से प्रार्थना की गई है कि सभी मनुष्य सुखी हों, निरोग हों और उन्हें सभी मंगलमय दृश्य देखने को मिलें। इस श्लोक में यह भी प्रार्थना की गई है कि किसी को भी दुःख न हो।
Famous Shlokas in Sanskrit With Their English Translations
Here are some famous Sanskrit shlokas along with their English translations:
- Om Namah Shivaya: Translation: “I bow to Lord Shiva.”
- Asato ma sadgamaya, Tamaso ma jyotirgamaya, Mrtyorma amritam gamaya: Translation: “Lead me from the unreal to the real, from darkness to light, and from death to immortality.”
- Sarve bhavantu sukhinah, Sarve santu niramayah, Sarve bhadrani pashyantu, Ma kashchit dukhabhag bhavet: Translation: “May all beings be happy, may all beings be healthy, may all beings experience prosperity, and may no one suffer.”
- Vasudhaiva Kutumbakam: Translation: “The world is one family.”
- Ahimsa paramo dharma, Dharma himsa tathaiva cha: Translation: “Non-violence is the highest duty; so too is violence in service of Dharma.”
- Yatha pinde tatha brahmande, Yatha brahmande tatha pinde: Translation: “As is the microcosm, so is the macrocosm; as is the macrocosm, so is the microcosm.”
- Satyam vada, Dharmam chara: Translation: “Speak the truth, practice righteousness.”
- Karmanye Vadhikaraste Ma Phaleshu Kadachana: Translation: “You have the right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to the fruits of your actions.”
- Sarve bhavantu sukhinah, Sarve santu niramayah, Sarve bhadrani pashyantu, Ma kashchit dukhabhag bhavet: Translation: “May all beings be happy, may all beings be healthy, may all beings experience prosperity, and may no one suffer.”
- Ayam bandhurayam neti ganana laghuchetasam, Udara charitanam tu vasudhaiva kutumbakam: Translation: “This is mine, that is not—such thoughts of the narrow-minded are born out of ignorance. For the broad-minded, however, the whole world is one family.”
Conclusion
संस्कृत श्लोक अर्थ सहित एक महत्वपूर्ण भाग्यशाली विरासत हैं। इन श्लोकों की गहराई, विविधता, और आदर्शवादी विचारधारा हमें धार्मिकता, नैतिकता, और जीवन के संघर्ष के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। इनका अध्ययन हमें अपने जीवन को समृद्ध और ध्यानयुक्त बनाने में सहायता कर सकता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. संस्कृत श्लोक क्या हैं?
संस्कृत श्लोक एक विशेष प्रकार की कविता होती है जिसमें भावों और विचारों को संक्षेप में प्रकट किया जाता है। ये श्लोक संस्कृत भाषा में होते हैं और धार्मिक, नैतिक और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए उपयोग होते हैं।
क्या संस्कृत श्लोक पढ़ने और समझने के लिए संस्कृत जानना आवश्यक है?
नहीं, संस्कृत जानना संस्कृत श्लोक पढ़ने और समझने के लिए आवश्यक नहीं है। हालांकि, कुछ बुनियादी संस्कृत शब्दों और वाक्यांशों की समझ होने पर इनकी अर्थ-सहित व्याख्या करना सरल हो सकता है।
3. क्या संस्कृत श्लोकों का अभ्यास करने से कोई लाभ होता है?
हाँ, संस्कृत श्लोकों का अभ्यास करने से आपको ध्यान और मनःशांति में सुधार हो सकता है। इनके पाठ और समझने से आपका बुद्धि संशोधित हो सकता है और आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
4. संस्कृत श्लोक की गणना किसे की जाती है?
संस्कृत श्लोकों की गणना महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित महाकाव्य ‘रामायण’ में की जाती है। इसके अलावा वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य पुस्तकों में भी संस्कृत श्लोक दिए गए हैं।